लखनऊ। उत्तर प्रदेश में पिछले एक वर्ष के दौरान ट्यूबरक्युलोसिस (टीबी) के मामलों में 38 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 2017 में प्रदेश भर में 2.96 लाख टीबी रोगी सामने आए थे, जबकि 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 4.1 लाख हो गया। यह जानकारी उत्तर प्रदेश के स्टेट टीबी ऑफिसर डॉ. संतोष गुप्ता ने लखनऊ में एक जागरुकता कार्यशाला में दी। श्री गुप्ता ने बताया कि हाल के वर्षों में प्राइवेट सेक्टर के स्वास्थ्य प्रदाताओं और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के बीच तालमेल में सुधार हुआ है। जिसके चलते टीबी के रोगियों को खोजने और उनका आंकड़ा जुटाने में आसानी हुई है।
स्टेट टीबी ऑफिसर ने बताया कि प्राइवेट सेक्टर के स्वास्थ्य प्रदाताओं (डॉक्टर, कैमिस्ट, डायग्नोस्टिक लैब) को जरूरी मदद भी मुहैरा करा सकती है। साथ ही प्राइवेट डाॅक्टरों व अस्पतालों द्वारा मिलने वाली सूचनाओं और उपचार के परिणामों पर निगरानी भी रख सकती है। डॉ संतोष गुप्ता ने राज्य में टीबी रोगियों को दी जाने वाली सेवाओं में सुधार के लिए विभागों के बीच समन्वय मजबूत करने के लिए उठाए गए कदमों की भी जानकारी दी। बताया कि भारतीय डाक विभाग के सहयोग से प्रदेश के चार जिलों में 24 घंटों के भीतर बलगम को परीक्षण के लिए लैब तक पहुँचाने की व्यवस्था की गयी है। पंचायती राज, शिक्षा, श्रम तथा महिला व बाल विकास विभागों के साथ मिलकर टीबी जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं ताकि लोगों को टीबी की बीमारी और इसके उपचार की सही जानकारी मिल सके।
कार्यक्रम में उप्र स्टेट टास्क फोर्स फॉर ट्यूबरक्युलोसिस ऐलिमिनेशन के चेयरपर्सन और केजीएमयू पल्मोनरी विभाग के हेड प्रो. सूर्यकांत भी मौजूद रहे। प्रो. सूर्यकांत ने बताया कि टीबी उन्मूलन रणनीति में राज्य के मेडिकल काॅलेजों की भूमिका के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस वर्ष से मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता प्राप्त करने के लिए सभी मेडिकल काॅलेजों को टीबी रोगियों का निःशुल्क इलाज इलाज अनिवार्य कर दिया गया है। इसमें ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के मरीज भी शामिल हैं।
डॉ सूर्यकांत ने कहा कि टीबी रोगियों की संख्या में वृद्धि का श्रेय निक्षय पोषण योजना को भी दिया जा सकता है। यह टीबी रोगियों के लिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फर स्कीम है। इस स्कीम के तहत हर टीबी रोगी को इलाज की पूरी अवधि में प्रतिमाह 500 रुपए मिलते हैं। प्रो. सूर्यकांत ने बताया कि अप्रैल 2018 में इसकी शुरुआत से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में 3,90,298 से ज्यादा रोगियों को इस स्कीम के अंतर्गत लाभ मिल चुका है। अब तक लगभग 81.8 करोड़ रुपए की मदद दी जा चुकी है।
लखनऊ अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के प्रेसिडेंट-इलेक्ट डॉ शिरीष भटनागर ने टीबी उन्मूलन में पीडियाट्रिशियनों तथा इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की भूमिका के बारे में जानकारी दी। बताया कि इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने हाल ही में सेंट्रल टीबी डिविजन के साथ एक करार (एमओयू) पर दस्तखत किए हैं जिसके अनुसार सदस्यों के लिए देश भर में 300 कार्यशालाएं की जाएंगी। साथ ही 18,000 से अधिक सदस्यों एवं 2,000 सरकारी चिकित्सा अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाएगा।